Sunday, April 26, 2020

Balance of Nature प्रकृति का संतुलन

 
नमस्कार दोस्तों काफी समय बाद फिर से समय मिला है कुछ लिखने के लिए तो हाजिर हु अपनी नन्ही सी
 कलम के साथ दोस्तों इन दिनों पूरा विश्व एक वैश्विक महामारी से जूझ रहा है बड़ी बड़ी महाशक्तियों ने भी
 इस महामारी से बहुत नुक्सान उठाया है और आगे कितना नुक्सान होगा हम शायद इसकी कल्पना भी नहीं
 कर सकते एक बात तो यहाँ पर हम इंसानो को समझ आ गई है की हम इस नेचर के आगे बेबस है और 
 
 ये नेचर जैसे चाहे हमें अपनी शर्तो पर रख सकता है अब तक इंसान विकास की दौड़ में अंधाधुन्द भाग रहा था 
 पर आज इस महामारी ने बता दिया की जीवन में पैसा ही सब कुछ नहीं होता हम जिस विकास के पीछे भाग  
 रहे थे आज वो बहुत छोटा मेहसुस होता है और  बड़ी सिर्फ जिंदगी लगती है आज हम जी रहे है विकास से परे 
 बिना किसी जद्दोजेहद के सामान्यता अपनों के बीच बिना किसी मानसिक दबाव के हमने इसी विकास के चलते 
 बड़े बड़े शोक विकसित कर लिए थे जिनको पूरा करने के लिए हमने प्रकीर्ति का बहुत नुक्सान किया है  गंगा 
यमुना व् अन्य सहायक नदियों को हमने गन्दा कर दिया  हवा हमने ख़राब कर दी जमीन कीटनाशक डाल कर 
 
ख़राब कर दी सेहत हमने ख़राब कर ली बड़े स्तर पर देखा जाये तो हमने जीने के सभी रास्ते बंद कर दिए है 
आज हम स्वस्थ नहीं है और न ही जीवन का आनंद ले रहे है और अब  हमें जो मिल रहा है जिसको हम सुख
 समझ रहे थे वो मिथ्या था आज इस लॉक डाउन में  पता चल रहा है आज सेहत और खाने की सबसे अधिक
 आवश्यकता है जिसकी वजह से हम जिन्दा रह सके और इस बीच हमने जो अंधाधुन प्रकृति का दोहन किया 
था लॉक डाउन के दौरान वो अपने पुराने स्वरूप में आने लगा है आज आप हवा में सांस लेते हो तो एक ताजगी
 और सुगंध मिलती है नदिया साफ़ होने लगी है जिन नदियों को अरबो रुपए लगा कर भी साफ़ न किया जा सका
 
 था आज वो हमारे कुछ न करने  पर साफ़ हो रही है पेड़ो की कटाई कम हो रही है मतलब आज हर तरफ धरती 
अपनी चोटों को भर रही है जो हमने उसे दी है शुद्ध खाना पानी हवा  क्या इतना काफी नहीं है जीने के लिए और 
मानव सभ्यता को बचाने के लिए आज हमें सोचना होगा की विकास की ये अंधी दौड़ हमारी सभ्यता को मौत के 
मुँह में लेके जा रही है ऐसे ऐसे वायरसो की खेती हो रही है जो इंसानो का इस धरती से नामो निशा मिटा सकते है
 
 क्या इस के लिए हम अपने आप को एडुकेटेड प्रजाति कहते है जो सबका समूल विनाश करने को उतारू है हमें 
 ऐसे विकास की क्या आवश्यता है इसे रोकना  होगा वरना ऐसे कितने ही  वायरस लेबो में बैठे इन्तजार कर रहे
 होंगे अपने बाहर आने और मानव सभ्यता का विनाश करने के लिए आज सोचना जरुरी है 
 
 
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क्रोधी बालक                                                                                                                                            


1 comment:

गुरप्रीत सिंह said...

बहुत अच्छा लिखा है, धन्यवाद।
टाइटल आदि का कलर में बदलाव करें।