Saturday, April 7, 2018

शिक्षा या व्यापार

 
नमस्कार मित्रो दिनांक 07/04/2018 आज हर आदमी प्राइवेट स्कूल की बढ़ती हुई फीस हर साल एनुअल चार्ज एडमिशन चार्ज और अलग अलग तरह से स्कूलों के पैसा वसूलने की वजह से दुखी और परेशान है अपने जिगर के टुकड़ो को अच्छी शिक्षा दिलाने  के लिए अपना पेट काट काट  कर स्कूलों को पैसा देता है और चाहता है की उसके बच्चे पढ़ - लिख  कर तरक्की  करे परन्तु कुछ सालो में उसकी  कमर टूट जाती है और  न  चाहते  हुए  भी उसे अपने  बच्चो  को सरकारी स्कूल में भर्ती करवाना पड़ता है  
क्या वजह है की लोग सरकारी स्कूल में अपने बच्चो को दाखिला नहीं करवाना चाहते जबकि अगर हम सरकारी स्कूल के बजट की और देखते है तो पता चलता है की सरकारी स्कूल का बजट किसी भी आम  प्राइवेट स्कूल से कई गुना ज्यादा होता है सरकारी स्कूल के अध्यापक भी पूरी तरह से शिक्षित और सरकारी मानकों पर खरे होते है फिर ऐसा क्या है की लोग अपने बच्चो को सरकारी स्कूल में न पढ़ाकर प्राइवेट स्कूल ,में पढ़ाना ज्यादा अच्छा समझते है ये बात विचारणीय है क्या सरकारी तंत्र में कोई खामी है या सरकार की तरफ से लापरवाही या अभिभावकों का चमक-धमक में रुझान बात चाहे जो भी हो सन 2000 से पहले के ज्यादातर अभिभावक सरकारी स्कूल में ही पढ़े है ज्यादातर सरकारी नौकरी पर सरकारी स्कूल से पढ़े हुए ही लोग है फिर अब  ऐसा क्या हो गया है सर्वे किया जाए तो हम खुद देखेंगे की सरकारी स्कूल के अध्यापक भी अपने बच्चो को प्राइवेट स्कूल में ही पढ़ा रहे है क्या उनको खुद सरकारी शिक्षा पर विस्वास नहीं रहा या वो शिक्षा का माहौल सरकारी स्कूल में नहीं है जो वो अपने बच्चो को देना चाहते है आम आदमी का अपने बच्चो को पढ़ाना जीने ,मरने जैसा हो गया है प्राइवेट स्कूल की फीस के पैसे उसकी जेब में नहीं है और सरकारी स्कूल का माहौल उसे सही नहीं लगता


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