Friday, November 13, 2015

.डिब्बा वापसी हास्य व्यंग

       
सुनते  हो   दीपावली  आ  गई  है  इस  बार  तुम्हारे  बॉस  क्या  देंगे  अपने  काम  में  व्यस्त  हमारी  श्रीमती  जी   ने  बिना  हमारी  तरफ  देखते  हुए  पूछा - हम  कुछ  कहने  ही  वाले  थे  की  उनका  अगला  तीर  फिर  से  कमान  से  छूट  चला..... पता है पड़ोस  वाले  शर्मा जी को उनके बॉस ने पूरा बोनस मिठाई के चार पांच डिब्बे और एक महंगे वाला कम्बल दिया है तभी तो शर्माइन बड़े इतराई इतराई सबको बता रही है। भगवान ऐसे बॉस सभी को दे और एक तुम्हारे बॉस है बोनस तो दूर एक ढंग  का   मिठाई का डिब्बा देने में भी जान  जाने  लगती  है कोई  कह  के  मर  गया है की बॉस बनो। हम अपने मुँह में आए कुछ चंद लफ्जो को मुँह में ही चबाकर बिट्टू की और ताकने लगे बिट्टू बड़े मजे से अपने पटाखों को बार बार  एक  पन्नी से  दूसरी  पन्नी में रख  कर idia  लगा  रहा  था की  कौन सी  वाली   पन्नी   आज  चलानी  है और कौन  सी  कल जलानी  है उसे  श्रीमती  जी  और  हमारी बातो  में  कोई  खास  इंट्रेस्ट  नहीं  है और  हो भी क्यों  अभी कल ही  उसने  कल हमारी जेब के साथ मनमाना सलूक करके अपने interest  का प्रबंध कर लिया था। हम अपने विचारो में खोए ही थे की श्रीमती जी की कड़कती हुई आवाज ने हमारा ध्यान भंग किया--------- हजार बार कह चुकी हु की कोई दूसरी नौकरी देख लो ऐसे ढीट बॉस के पास नौकरी करने का क्या फायदा जो न तो  तनख्वाह टाइम  पर  देता  है  और  ना  ही   त्यौहार  पर मुँह  झूठा  करता  है. श्रीमती  जी  का  गुस्सा  सांतवे  आसमान  पर  पहुँचते  देख मेने वहां से निकलने में ही भलाई समझी, बाहर आया तो शर्माइन ही दरवाजे पर खड़ी थी हमे लगा की आज हमने साक्षात कुटिल  मंथरा के दर्शन कर लिए जिसने हमे  बनवास   भेजने में कोई कोर कसर नहीं छोड़ी हैं पर खैर इन सब बातो से अपना ध्यान हटाते हुए हम पप्पू चौरासिया की दूकान पर पान खाने के लिए चल दिए ये हमारे मोहल्ले की एक मात्र ऐसी  दुकान है जहां पर मोहल्ले के सारे निठल्ले व मेरे जैसे लोग  दिन भर बैठ कर अपना mud सेट करते है. दुकान पर जाते ही पप्पू मजाक करते हुए  बोला और कौशिक जी क्या हाल है बड़े मायूस  दिख रहे हो भइया त्यौहार का  समय   है इस    मोके  पर  गुमसुम रहना सेहत  के  लिए  सख्त हानिकारक है..... हमने दांत भींचकर कहा बेटा मेरे जैसा टॉनिक तुझे मिलता होता तो सारा  चुल  पना निकल गया होता हमने कहा भाई पप्पू सारी बात छोडो एक अपने वाला पान खिलाओ उसे ही कचर के अपना गुस्सा कुछ शांत हो सकता है    वैसे हमारे मोहल्ले में राजनीती  की  बूम भी  जबर पर है जिसे देखो विकास के पीछे हाथ धो कर पड़ा है जबकि हमारे देश में लड़कियों की कमी हो रही है ये  पार्टियो के एजेंडे भी लोगो को भृम में डालते है  जहां कहते है बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ और वही कहने से नहीं चूकते की अगर हम सत्ता में आए तो विकास होगा ये दोहरी मानसिकता देश को ले डूबेगी। वैसे  आज कल बड़े बड़े साहित्यकार कलाकार  भी राजनीती की गंगा में गोते लगाने के मोह से बच नहीं पा रहे उन्होंने  एक  ट्रेंड  सा  चला  दिया  है  सम्मान  वापसी  का  जिसे  देखो  अपना  कुछ  न  कुछ  लौटने  पर  लगा  है..इसी   उहापोह    में  दोपहर  कब  हो  गई  पता  ही  नहीं  चला  वो  तो  हमारे  पेट  में  कूदने  वाले  चूहों  ने  उछल  उछल  कर  हमें  घर वापसी  का सन्देश  दे  दिया  वर्ना शाम का खाना  मिलना  भी  मुश्किल   हो  जाता ......... घर पर   माहोल  शांत  था   लेकिन ये  शांति में हमें किसी  बड़े ही खतरनाक  तूफान का इशारा कर रही थी अपने  अपने  नसीब  में  शांति  का  सुख  मिलना  ब्रह्मा  जी  लिखना  ही  भूल  गए  है  और  उस  पर  चित्रगुप्त  जी  जो  हमारे  नसीब  वाले  पन्ने  पर  मजे  मजे  में  कुछ  न  कुछ  ओवर righting  करते रहते है खैर हमने देखा  हमारे बॉस के दूत हमारे लिए कुछ  लेकर आ रहे थे हमने गर्व से अपना सीना चढाकर अपनी श्रीमती जी की तरफ  देखते  हुए  कहा ..... देखा  अपना बॉस चाहे जितना भी कंजूस है लेकिन दीपावली  जैसे  त्यौहार  पर  उसे हमारी साल  भर  की   मेहनत और  लगन  दिखाई  दे  ही  जाती  है  जभी  तो  उन्होंने  खुद  हमरे  लिए घर  पर  सम्मान  भिजवाया  है  ....... श्रीमती  जी   कुछ  बोली   नहीं  बस  चुपचाप   हमें   देखने के बाद   हल्का  सा मुस्करा दी और हमने अपने बॉस को मन ही मन इस  एक मुस्कराहट के लिए हजारो दुआये दे डाली। .... लैकिन      ये  ख़ुशी  ज्यादा देर तक  नहीं  चली   चित्रगुप्त जी अपना हाथ दिखा चुके थे.. बॉस के  दूतो  ने  एक  हल्का  सा  बजने  वाला बिस्कुट का  डिब्बा  निकाल  कर  हमारे  हाथ  थमा  दिया  और  happi dipawli बोल  कर  आगे  निकल  गए  डब्बे  के  वजन  से  हमें  अपने  बॉस  के  वजन  का  अंदाजा   हो   चूका था  ...  श्रीमती  जी अब   तक   अंदर वाले  कमरे  जिसे   मेने  कभी  कोप  भवन  का  नाम  दिया  था उसमे   जा    चुकी  थी और अब   हमारी     बारी   थी   तभी  एका  एक  हमारै   पैरो  ने  हमसे  कहा। ......  कौशिक  जी  आप  को  अंदर  जाना  है  तो  जाइये  ये  हम  से  न  होगा।--  कोई  और  होता  तो  शायद  उसकी  बातो  को  अनसुना  कर  के हम  डांट खाने के लिए कोप  भवन  चल दिए होते पर अपने पैरो के इस प्रकार जवाब देने पर हमने  अंदर जाना उचित न समझा वो कहावत  है  न की शेर की मांद में बिना सुरक्षा उपकरण के नहीं जाना चाहीए और यहाँ  तो  वो शेरनी  है  जिसे  हमने खुद  अपने  बॉस  की  झूटी  तारीफ करके घायल   किया  है  …  सुड्डानली हमारे दिमाग में अपने बॉस का जिक्र आते ही उसके प्रति बड़ी घृणा के बादल छाने लगे की ये वो बॉस है जिसके लिए हमने पूरी मेहनत और ईमानदारी से काम करने का ये सिला  मिला   हमें भी पुरस्कार और सम्मान लौटाने  वालो  के लिए हमदर्दी होने लगी और  आनन फ़ानन हम भी  अपना डिब्बा वापिस करने चल पड़े

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