बसेरा लौटा दो
प्रकृति मानव मात्र की नहीं है। हमारे सिवा अनेक जीव-जंतुओं का बसेरा है। प्राकृतिक-संतुलन में पशु-पक्षियों की भूमिका सराहनीय है। लेकिन हमारे स्वार्थपूर्ण निर्मम व्यवहार से अपने ही सहजीवी बेघर हो रहे हैं। हमारा क्या फ़र्ज है कि इस प्राकृतिक संपदा को आगामी पीढ़ी के लिए सुरक्षित रखने में? समकालीन कवि ज्ञानेन्द्रपति की कविता "नदी और साबुन", महादेवी वर्मा का रेखाचित्र "गौरा", मिलानी की घटना "हाथी के साथी", रामदरश मिश्र की कविता "चिड़िया" आदि बसेरा लौटा देने की प्रेरणा देनेवाले हैं। व्यावहारिक विधाएँ, पारिभाषिक शब्द, भाषा की बातें आदि इस इकाई के आकर्षण हैं।
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इस इकाई से परिचय पाएँ-
- समकालीन कविता की भाषिक संरचना, प्रतीक, बिंब आदि का
- रेखाचित्र की विशेषताओं का
- घटना की वर्णन-शैली का
- पारिभाषिक शब्दों का
- हिंदी व मातृभाषा के समध्वनीय शब्द, लिंग, विशेषण,वर्तमान व भविष्यत्कालीन क्रियाओं के प्रयोग का ।
ये क्षमताएँ भी पाएँ
- समकालीन कविता की आस्वादन टिप्पणी तैयार करने की
- संगोष्ठी में भाग लेने की
- रपट तैयार करने की
- प्रसंगानुकूल उद्घोषणा तैयार करने की
- वार्तालाप तैयार करने की
- चित्र-प्रदर्शनी आयोजित करने एवं उसमें भाग लेने की ।
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